शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

वजन

हर औरत
होती है मजूर,
ठोती है वजन
बाँध के गठ्ठर
और उस बोझ के दरमियाँ
हंसती, मुस्काती भी है,
नहीं अंदाजा लगा सकते कभी
गठ्ठर के वजन का।
कभी, अकस्मात
ढीला भी होता है बंधन
गिर पड़ता है एक टुकड़ा
और रूकती , ठिठकती
कभी खुद तो कभी किसी की मदद ले
समेटती है खुद को
क्योकि  ढोना ही जिंदगी है ।

1 टिप्पणी:

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