शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

दीवारें बोलती हैं
बचपन से हम एक मुहावरा सुनते आये हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं | सुनते आये हैं तो सही ही होगा क्योंकि हम सुनी-सुनाई बातों पर वैसे भी जल्द ही यकीन कर लेते हैं | अब ये सोचिये कि अगर सुन सकतीं तो इतना सब सुन के अपने अन्दर कहाँ तक दबाये रखतीं तो बहुत लाजमी है कि वे बोलतीं भी | तो सोचिये कि गर दीवारें बोलतीं भी तो क्या होता | न, वो पेंट के विज्ञापन सरीखी नही कि फलाना पेंट लगाओ तो  दीवारें बोल उठेंगी | हमारे आपकी तरह सचमुच का बोल सकतीं |
तब हर दीवार खुल के बोल सकती | अपना इतिहास बता सकती कि कब कहाँ, किसने, कितनी लागत से, कितनी ईंटों और कितने सीमेंट से उसे बनाया | तब तो तमाम घपलों घोटालों की गुंजाइश ही ख़तम हो जाती | ठेकेदारों का बड़ा नुकसान हो जाता | और तो और बेचारे गाइडों के पेट पे लात पड़ जाती | तब अकबर अनारकली को दीवार में चुनवाने की सजा नहीं दे पाते | उन्हें कोई  और सजा ईजाद करनी पड़ती, क्योंकि दीवाल पहले ही बोल कर भन्डाफोड़ कर देती | हो सकता है अदालत में दीवालों को गवाही के लिए भी बुलाया जाता | पर दीवारों के पैर नहीं होते, बस इसीलिए ये होते –होते रह जाता |
ऐसा नहीं कि सिर्फ हमसे ही बात करतीं, अकेले होने पर बोरियत होने पर आपस में गपिया भी सकतीं |  फिर ऐसा भी होता कि जिस दीवाल की मरम्मत या रंग रोगन हो जाता वो खुद को दीवारों का नेता समझने लगती | शेष दीवारें उससे बचा के धीमे-धीमे उसकी कुचर्चा भी कर लेतीं | बाहरी दीवाल और भीतरी दीवाल में क्लास कनफ्लिक्ट भी होता | बाहरी दीवाल खुद को एलीट क्लास समझ कर भीतरी दीवारों को मुंह न लगाती | बोल सकने पर गा पाना भी संभव होता | मन न लगने पर दीवारें भी अन्ताक्षरी खेल सकतीं |  
सबसे अधिक मुसीबत बेचारे प्रेमी जोड़ों को आती | घरवालों, नाते-रिश्तेदारों से छुपते-छुपाते, जैसे-तैसे कर मिलने पहुंचे प्रेमी जोड़े अब दीवारों के खौफ में भी जीते कि पता नही कब कौन सी दीवाल ने उन्हें एक साथ देखा हो और कब वो सबके सामने उनकी चुगली कर दे | उनकी इस मुसीबत के कारण ही हमने अपने इस आईडिया पर आविष्कार करने का विचार त्याग दिया वरना हम इस तकनीक का पेटेंट भी करा चुके होते | तो अब दीवारों के बोलने को रद्द समझते हुए उनके चुपचाप सुनने की विशेषता पर ही विश्वास बनाये रखते हैं | शायद भविष्य में कभी हम ऐसा समाज बना पाने में सक्षम हुए जब हमें दीवारों से डरने की जरुरत न पड़े, तब तक के लिए दीवारों का  बोलना मुल्तवी समझा जाए |


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