सोमवार, 21 अगस्त 2017

मुझे नहीं बनना है वो
जो तुम चाहते हो कि बनूँ मैं,
मुझे परिष्कृत करने की
तुम्हारी कोशिशों, प्रयासों, मेहनतों की
कद्र है मुझे,
जानती हूँ है ये मेरे लिए
तुम्हारी फिक्र, तुम्हारी शुभेच्छायें
पर बंधा, संवरा, तराशा हुआ मैं,
नही भाता मुझे खुद ही
मैं रहना चाहती हूँ बेपरवाह
जीना चाहती हूँ बेहिसाब
बदलूँगी तो खुद
बंधूंगी तो अपने ही खोल में
क्यारियों में बंध नहीं जीना मुझे
मुझे फैलना, पसरना है निर्बंध
क्यूँकि बोंसाई नहीं हूँ मैं मेरी ही।

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